देश-विदेश की लघुकथाएँ

                         


                           


 


भलाई


दोस्तों के साथ भलाई किस तरह की जाय, इसके उदाहरण में श्रीमान क ने यह कथा सुनाई। तीन नौजवान एक बुढे अरब के पास पहुंचे और कहा- हमारा बाप मर गया है। उसने हमारे लिए 17 ऊंट छोडे हैं और अपनी बसीयत में शर्त रखी है कि, सबसे बड़े बेटे के आधे ऊंट रहेंगे। एक तिहाई दूसरे के पास और नवाँ हिस्सा सबसे छोटे बेटे को जायेगा। अब हम आपस में इस बँटवारे पर एकमत नहीं हैं। आप मामले का निबटारा करें।


अरब ने सोचा और कहा- जहां तक मेरा ख्याल है, उचित ढंग से बंटवारा करने के लिए तुम्हारे पास एक ऊंट की कमी है। मेरे पास एक ऊंट है, लेकिन यह मैं तुम्हें सौंपता हूँ। इसे ले जाओ, बँटवारा कर लो दो।


नौजवानों ने अरब को इस उदारता के लिए धन्यवाद दिया। ऊँट अपने साथ लिया और अठारह ऊंटों को कुछ इस तरह बाँटा कि बड़े बेटे के हिस्से में आधे ऊँट, यानी नौ-दूसरे के हिस्से में एक तिहाई, यानी छह-और सबसे छोटे के हिस्से में नवाँ हिस्सा-यानी दो ऊँट आये।


 आश्चर्य की बात उनके लिए यह थी कि जब उन्होंने अपने-अपने ऊँट अलग किये तो एक ऊँट बच गया। उसे वे अपने बूढे दोस्त को धन्यवाद के साथ लौटा आए।


श्रीमान क ने इसे भलाई का सबसे श्रेष्ठ नमूना कहा, क्योंकि इसके लिए त्याग की आवश्यकता नहीं पड़ी।


                                             


रूप और वस्तु


श्रीमान क एक ऐसे चित्र को बड़ी देर तक ऐसे ध्यान से देखते रहे, जिसमें कुछ चीजों को मनमाना रूप दे दिया गया था। उन्होंने कहा- कुछ कलाकारों के साथ यही दिक्कत है, जो अनेक दार्शनिकों के साथ हुआ करती है, जब वे दुनिया को देखते हैं।


रूप की तलाश में वे वस्तु से हाथ धो बैठते हैं। मैं पहले एक माली के यहाँ काम करता था। उसने मुझे एक कैंची दी और एक जयपत्र की झाडी को कतरने को कहा। झाडी एक गमले में उगाई जानी थी और उत्सव के मौकों पर खरीदी जाती थी। इसलिए इस झाडी को एक गेंद का आकार देने था।


मैं तुरंत इधर-उधर निकल आयी फुनगियों को कतरने में जुट पड़ा, लेकिन फुनगियों को कतरने में जुट पड़ा, लेकिन मैं सफल नहीं हुआ। हालांकि उसे गेंद का आकार देने के लिए मैंने काफी समय तक कडा परिश्रम कियापहले तो मैंने एक तरफ की फुनगियां जरूरत से ज्यादा कतर डालीं और फिर दसरी तरफ की उससे भी ज्यादा कतर दीं।


आखिरकार वह गेंद की तरह बन गयी, मगर बहुत छोटी गेंद की तरह, माली घोर निराशा हुआ और उसने कहा- बेशक, यह गेंद है, मगर जयपत्र की झाडी कहाँ है।


सन्दर्भ- विश्व साहित्य से लघुकथाएं ( संपादन-अशोक भाटिया)


 


                                           


                                       पितृत्व जाग उठा


 


"भागो-भागो-भागो ऐसी चिल्लाचूट में अनूप ने अपनी पेंट ऊपर सरकाई और जोर की दौड़ लगा, एक पैर कहीं तो दूसरा कहीं रखा| तभी एक आर्त धीमी सी आवाज आई, बाबा बचाओ, बाबा! तपते अंगारे धधकती आँच में वह करुण रुदन “बाबा बचाओ!"


“बाबा बचाओ''! अनूप ने आव देखा ना ताव झट से कूद पड़े उस नन्ही सी जान को बचाने के लिए कूद पड़े आग में और उसको अपनी गोद में उठा लिया। बच्ची हाथ पसारे सिसकी भरती हुई बोली अंकल,“नई फ्रॉक जल गई अब मार पड़ेगी नई माँ मारेगी|"


"चिन्ता मत करो बेटी, तुम्हारे पैर बुरी तरह जल गए हैं आओ पहले डॉक्टर के पास चलते हैं, तुम्हारा नाम क्या है बेटी?"


नाक लटक रही थी, सुड़पते हुए बोली, “चुडैल''


"अरे, ये नाम थोड़ी होता है!"


"पर, माँ तो यूं ही इसी नाम से पुकारती है| छोटा भैया भी था उसे हमारी गोद से छीन लिया और हमको धक्का दे दिया, बोले, मर जा, कौन पाले हरामखोर को, आग में जल जायेगी, आग में बहुत से लोग मर रहे हैं।"


अनूप ने उस बच्ची को प्यार किया और कहा, "तुम हमारे घर चलोगी?" उसके चेहरे पर जो भाव आये वे अव्यक्त थे| झट से अनूप के साथ चल दी| अनूप ने पुलिस को सूचना दी कि यदि कोई व्यक्ति छोटी बच्ची को खोजे तो उसे इस पते पर भेजें।


छाले- फफोले फूट रहे थे पर उनमें एक अनूठा आनंद मिल रहा था|


आनंद मिल रहा था| धीरे-धीरे अनूप के भीतर पितृत्व जागने लगा|


बच्ची को पुनः गोद में उठाया और घर की ओर चल दिया, पत्नी उमा दौड़ती हुई आई और बच्ची को पुचकारती हुई बोली, "कितनी प्यारी बेटी है|'' उसने भी ना कुछ पूछा, ना पूछना जरूरी समझा। 


बच्चे, मन के सच्चे


-कोमल वाधवानी 'प्रेरणा'


“सॉरी उन्नू बेटे, हमेशा की तरह मैं तुम्हे अपने साथ चॉकलेट दिलाने नहीं ले जा सका। अचानक बरसात जो शुरू हो गई।'' गाड़ी में बैठते हुए मेहमान ने कहा।


बिना उन्नू ने तर्क दिया, “बरसात आ गई तो क्या? आपके पास गाड़ी जो है।'' मेहमान बिना झेपे गाड़ी स्टार्ट कर रवाना हो गए। उन्नू का सच बोलना काम न आया।


 


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