मध्यप्रदेश की लघुकथाएँ


 


आशीर्वाद


                                                                        -सविता उपाध्याय,


महेश्वर “अरे राम! आज इतनी सुबह-सुबह तैयार हो गये हो! कहीं जा रहे हो क्या?'–श्याम ने पूछा ।


राम ने कहा - 'हाँ' “कहाँ जा रहे हो?'


'मैं चर्च जा रहा हूँ।'


'अरे ! 'तुम तो हिंदू हो! तुम्हें तो मंदिर जाना चाहिए, फिर तुम चर्च क्यों जा रहे हो?'


'मुझे एग्जाम देने शहर जाना है। बस का समय हो रहा है। तुम्हें तो मालूम है, यह बस चूक गया तो फिर दूसरी बस परीक्षा शुरू होने तक भी नहीं पहुँचायेगी।'


'मंदिर यहाँ से दूर है और चर्च पास है और माँ कहती हैकि 'भगवान तो सर्वत्र है।'


'चलो मैं भी चलता हूँ।'


दोनों चर्च जाते हैं। राम को प्रार्थना करते हुए देख, श्याम भी ध्यान की मुद्रा में खड़ा हो जाता है।


'श्याम तुमने क्या प्रर्थना की?'


'जैसे भगवान सर्वत्र व्याप्त है उसी प्रकार भगवान तो मन की बात सुन लेते है।' इन दोनों की बाते सुन रहे चर्च के फादर की मुस्कुराहट रहे थे।


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                                          स्टूडेंट


                                                          -डॉ॰ वर्षा ढोबले धोपाल


अस्पताल में कांउन्टर पर खड़े हुए, संध्या परेशान हो चुकी थी, तभी अपना नम्बर आने से चेहरे रौनक आ गई|


जैसे ही नम्बर आया, उनके हाथ से परचा और फीस के बहुत सारे पांच सौ रूपये के नोट देखकर, जमा करने वाला जोर से बोला, “अरे मैडम, अब ये नोट नहीं चलेंगे, कल रात से ही बंद हो चुके हैं।"


इतना सुन कर संध्या को घबराहट होने लगी, उसने फोन पर बेटे को वस्तु स्थिती समझाई|  उसकी फ्लाइट दो घंटे लेट होने से वह भी लाचार था। पति को आई॰ सी॰ यू॰ में शिफ्ट करवाना जरूरी है, तभी आगे का इलाज संभव होगा।


हैरान परेशान संध्या रूआंसी सी बैंच पर धम्म से बैंठ गई। तभी गले में स्टेथो डाले डॉ. उनके पास आया, उसने मैडम के चरण स्पर्श किये और बोला, ''पहचाना मैडम, मैं अनिरुद्ध, आपका चहेता स्टूडेंट।" उन्होंने गौर से चेहरे पर नजर डाली और कहा, “बेटा मैं बहुत परेशान हूँ, तभी तुम्हें पहचान नहीं सकी| तुम कैसे हो?"


उन्होंने अनिरूद्ध से अपनी समस्या को कहा, “अरे बस इतनी सी बात, आप निश्चिंत रहें, अब मेरे रहते आपको कोई यहां का काम नहीं करना होगा और रूपये लेकर आगे के सारे पेमेंट ऑन लाइन करवा दिये| इलाज के लिये, सभी की तैनाती कर दी|


संध्या के पति की हालत मे कॉफी सुधार हो गया संध्या ने अपने बेटे को डॉ. अनिरूद्ध से मिलवाया, देखो बेटा,''ये है मेरा चहेता स्टूडेंट, मेरे बगिया में इतने सुवासित पुष्प थे,मैंने आज जाना। उनकी खुशबू से सारा वातावरण प्रफुल्लित हो उठा है। जैसे मेरी मुट्ठी में मानो सारी बगिया का वास हो|"


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                          मानिंग वॉक


                                                                 -अशोक  मनवानी


कपूर साहब प्रतिदिन लगभग सिर्फ सौ मीटर की चहल-कदमी जरूर करते थे। उनकी सुबह की सैर का नियम मौसम की बाधाओं से भी न टूटता। हालांकि दिन भर वे शहर की सड़कों को अपनी आयातित कार से रौंदते और आसपास के छोटे-छोटे काम भी गाड़ी से ही निपटाते।


एक दोस्त ने यह दिनचर्या देख एक दिन पूछ ही लिया -भाई साहब, आपकी तोंद बजाए घटने के बढ़ती ही जा रही है जबकि आप रोज सुबह टहलने भी जाते हैं। क्या राज है?


अब मार्निग वॉक तो हो गया - यह तो एक फैशन है, तोंद कम करने के लिए घर में साइकिल रखी है। महीने में एक दिन उसके पैडल चलाता हूं। कपूर साहब ने निर्विकार भाव से कहा था।


एफ-90९०/६१ तुलसी नगर, भोपाल मो-९४२५६८००९९


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                              दुविधा


                                                     • सुनीता प्रकाश, भोपाल


आज सुनयना के हाथों में लोकेश का पत्र फड़फड़ा रहा था। अनायास ही उसके अधरों से लजीली मुस्कान के साथ अस्फुट गीत फूट पड़े। हृदय में प्रेम की तरंगों के साथ धड़कन भी बढ़ गयी थी। उसका चेहरा और भी नूरानी नज़र आने लगा था।


“दीदी, अरे सुनो न। प्लीज दो हजार “दीदी, अरे सुनो न। प्लीज दो हजार रुपये कोचिंग के लिये दो न।'' पर तभी नन्हा जाने कब आकर सामने खड़ा हो गया था।


"अरे, मैं क्या सोच रही हो? इस घर का मेरे बिना क्या होगा? पापा का जीवन तो उनकी आंखों की तरह अंधकारमय हो जायेगा। पर....मेरा जीवन क्या यूं ही वीरान रहेगा'' सुनयना अपने मन की कशमकश में उलझी उस पत्र को मरोड़कर बस अंदर रखने के लिए मुड़ी कि एक बलिष्ठ हाथों ने उसे एक गुलाब थमा दिया।


"मैडम, क्या आप मेरे साथ सुख-दुख सांझा करेगीं।'' लोकेश पीछे खड़ा मुस्कुरा रहा था।


“मगर...."


“मगर क्या? अरे, क्या आपकी सभी जिम्मेदारियों को वहन करने के वचन को स्टाम्प पेपर पर लिखकर देना होगा।'' सुनयना छलके नयनों से एकटक लोकेश को देखे जा रही थी।


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                             जिम्मेदार कौन


                                                                          • राजू गजभिये


चहूँ और लहलहाते खेत, किसान अपने खेतों में मेहनत से पसीना बहा रहे थे। इस वर्ष औसत बारिश से ही अच्छी फसल आने से राजू का खुशी से झूमने का मन हो रहा था, लेकिन कब खुशी का माहौल गम में बदल जाये यह सोच ही रहा था कि प्रकृति की नियति का खेल बडा विचित्र रहता है|


जो होना था वही हुआ आंधी, तुफान ने गेहूं की फसल को तहस-नहस कर दिया था। किसान राजू ने लाचारी में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। राजू के आत्महत्या से सम्पूर्ण गांव सदमें में आ गया।


आत्महत्या की घटना से तुरंत जिला प्रशासन ने राजू के परिवार को सबल देने के लिए परिवार सहायता, विधवा पेंशन, आवास योजनाए, कपिल धारा कुआं, राजू के पत्नी जया को नौकरी ये चार घोषनाएं प्रशासन ने तुरंत नेता टाईप कर दी।


गांव के लोग बड़े खुश हुये, परिवार को परिवार सहायता से जया के दुःख में राहत मिलेगी लेकिन क्या, मात्र 20 हजार की सहायता के बाद के लिए जिला पंचायत कार्यालय में पहुंची|


आवास के लिए जानकारी ली गयी तो ऑफिसर ने उस आवास फाइल को खोलकर देखा ही नहीं। स्वीकृति के लिए जिला पंचायत कमेटी के अध्यक्ष, कलेक्टर, जिला पंचायत सीईओ की मौजूदगी में बैठक होनी थी। दो साल से नहीं हुई| सरकारी दस्तावेजों से जानकारी हासिल हुई|


जया की विधवा पेंशन योजना 22 महिने बाद शुरु हुई| जया को इसकी सूचना भी देरी से दी गयी। राजू के देहांत के बाद तुरंत चार योजनाएँ जया को दिलवाने की प्रशासन की जिम्मेदार थी, लेकिन किसी ने भी गरीब परिवार की सुध नहीं ली।


जया बार-बार यही सोच रही थी कौन जिम्मेदार हैं?


         


              रेखा चित्र : कृष्णा गोप 


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                              क्षमा


                                                         • जया आर्य


सुरेश और मुकेश दो दोस्त बातें करते हुए समुद्र के किनारे घूम रहे थे। किसी बात पर बहस हुई तो एक ने दूसरे को थप्पड़ मारा|


मुकेश उदास हुआ, उसने रेत पर लिखा, “आज मेरे दोस्त ने मेरे मुहँ पर थप्पड़ मारा'।"


दोनों घूमते-घूमते आगे निकले| समुद्र की लहरें आई| थपेड़े पड़े और मुकेश को अपने साथ बहा कर ले गई|


सुरेश तड़प गया और किसी भी कीमत पर पानी का फासला तय कर मुकेश को बचा लाया, उसके पेट से पानी निकाला।


चलते चलते मुकेश ने पत्थर पर लिखा, “आज मेरे दोस्त ने मुझे डूबने से बचा लिया।''


सुरेश ने पूछा, "आज मैंने थप्पड़ मारा तो तुमने रेत पर लिखा और बचा लिया तो पत्थर पर लिखा ऐसा क्यों?''


मुकेश ने कहा, “अपने दोस्त द्वारा दिया गया दर्द रेत पर लिखना चाह रहा था ताकि हवाएं उड़ाकर ले जाएँ। कोई छाप न छोड़े और उसके द्वारा दिया गया सुख पत्थर पर लिखा ताकि कभी दिल से भी न मिट सके|''


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                      रहम


                                 • नानि भारद्वज


 जनवरी की ठण्डी बहुत थी। शीत लहर भी उठा था। ठण्ड से सबका बदन के काँप उठता था। बंगला मालिक पाँच कुत्तों की देखभाल में अपने नौकरों के साथ जुटा हुआ था|


नौकरों में से कोई कुत्ते को गर्म कपड़े पहना रहे थे तो कोई नजदीक दूध और पौष्टिक आहार खिला रहे थे।


दुआ गरीब एक गरीब बूढ़ा  पतली सी था कमीज और धोती में कांपते हुए बंगला बजार के करीब पहुँचा। गेट से काँपते हुए से धीमी आवाज से बोला :  “मालिक! हम एक गरीब कल से भूखा हूँ, और घर पे पैसे, सोने और पहनने का चादर-उदर और मोटा कपड़ा नहीं है, कुछ मदद कीजिए हुजुर!'' मालिक : “गरीबी का नाटक दिखा के लोगों को बेवकूफ बनाते हो !,चलो आगे बढो !''


गरीब: “हुजुर, मैं कोई नाटक-उटक नहीं कर रहा हूँ| मैं आप ही की मोहल्ला नजदीक की झुपड़ीपट्टी में रहने वाला गरीब हूँ\ मै ठेला चला के गुजरा कर रहा था| आपकी बंगला में भी कितनी बार बजार से सामान पहुँचाए थे| मैं पन्द्रह दिन से बीमार हूँ, घर में अनाज का एक दाना नहीं, बच्चे, बीबी भूखे हैं, मुझको कुछ पैसे उधार दीजिए, मैं ठीक होते ही आपको कर्जा चुक्ता कर दूंगा।"


कुत्ते जीभ लपलपाते आहार ले रहा था तो मालिक बहुत रोमांचित होकर कुत्ते की तरक्की देख रहा था। गरीब की अपील सुना अनसुना जैसा कर रहा था।


गरीब फिर से बोला : “हुजुर, अल्ला आपको दुआ देगा, मैं आपसे उधार मांग रहा हूँ भीख नहीं, गरीब पर रहम कीजिए हुजुर!''


मालिक बोला: "क्या रहम रहम रट लगा रहे हो! यहाँ मेरे प्यारे कुत्ते को मलहम नहीं, रहम की बात करते हो !''


कुत्ते जोर-जोर से जीभ लपलपाने लगे! बेचारा गरीब बूढ़ा लाजवाब होकर चला गया।


• नानि भारद्वज विराटनगर , नेपाल, दुरभाष-९८४२०४७११५



 


                         खुद्दारी


                                                     -आनन्द बाला शर्मा


बाजार से आकर जैसे ही रामबाबू ने झोले से सब्जी निकाली जानकी देवी भड़क गईं-"आज फि र ले आए ये सडेगले और पिलपिले टमाटर। आखिर क्या करूँ मैं इनका? न बनाते बनता है न फैकते ही बनता है। अब तो नौकरानी भी नहीं लेती| रोज-रोज क्यों ले आते हैं आप?"


"अब मुफ्त में तो मिलते नहीं होंगे|"


जानकी देवी कुछ रुक कर बोलीं-"मैं तो मुफ्त में भी न लें|"


"आखिर मैं करता भी तो क्या? बाजार में एक गरीब बुजुर्ग सब्जीवाला सब्जी लेकर बैठता है वह हर आते-जाते ग्राहक को बहुत आशा भरी नजरों से देखता रहता है। उसकी सब्जी कम बिकती हैं क्योंकि वह ताजी नहीं होती हैं। जब मैं उससे कुछ खरीदता हूँ तो उसकी आँखों की चमक देखते ही बनती है। बस उसकी मदद करने के लिए कुछ खरीद लेता हूँ| वैसे तो कोई मदद लेगा नहीं| वह बहुत खुद्दार है। एक काम करो जानकी, जो टमाटर अच्छे हैं रख लो बाकी गमले में डाल दिया करो| पौधे उग जाया करेंगे।" राम बाबू ने गहरे आत्मसंतोष के साथ जानकी को कहा।


 


               


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                            पोलियो वाला लड़का


                                                                                 • वीरेंदर भाटिया


एक बहुत सुंदर लड़का था। गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ता था। दोनों पैर पोलियोग्रस्त हो चुके थे। बैसाखी के सहारे चलना उसकी नियति बन चुका था।


एक दिन लड़का अपनी नानी संग एक विशाल सत्संग में गया। लाखों लोग सत्संग सुनने आये हुए थे। सत्संग करने वाले बाबा जी की दूर तक ख्याति थी| बाबा भगवान तुल्य थे, यह बात लड़के के अवचेतन में भी बैठा दी गयी थी।


सत्संग में बाबा जी ने पिछले जन्म से इस जन्म को जोड़ते हुए कहा कि जो इस जन्म के कष्ट हैं वे पिछले जन्म के पाप की वजह से हैं। ये भोगने ही पड़ेंगे। जितना बड़ा जिसका पाप उतना बड़ा उसका कष्ट। कोई भी जीव इस जन्म में अंग-भंग, लूला-लँगड़ा है तो जरूर उसने पिछले जन्म में कोई महापाप किया है।


लड़का जैसे-जैसे सत्संग सुनता गया। उसका मन वैसे-वैसे डूबता गया। वह बहुत उदास हो गया। घर लौटा तो खाने-पीने से मन उचाट हो गया। माँ ने पूछा- 'क्या हुआ है। क्यों उदास है बेटा। खाना-पीना भी छोड़ दिया है तुमने। क्या बात है। बता अपनी माँ को।'


बेटे की रुलाई फूट गयी। माँ से लिपट कर लड़का देर तक रोया। बोला, 'माँ। मैंने पिछले जन्म में ऐसा क्या पाप किया कि मैं लँगड़ा हूँ।'


माँ का कलेजा बाहर आ गया।


'अरे तुम्हे किसने कहा कि तुमने पाप किया है?'


'कोई बाबा जी ने सत्संग में कहा। नानी से पूछ लो।' बच्चे ने रोते हुए कहा। बाबा जी की बात तो ईश्वरीय बात थी। उसे माँ भी झूठा कैसे कहे।


लड़का अब स्कूल में भी पिछड़ने लगा, उसकी चंचलता जाती रही। कुछ साल बीते। गांव के स्कूल में पोलियो ड्रॉप्स पिलाने वाली टीम आयी। लड़का स्कूल छोड़ चुका था। लेकिन गांव में खबर फैली तो उसके मन में जिज्ञासा हुई। वह अपनी बैसाखी टेकता हुआ स्कूल पहुँचा। पोलियो पिलाने वाली मैडम के पास जाकर उसने बेहद जिज्ञासावश पूछा 'इससे क्या होगा?


'इससे पोलियो का विषाणु मर जायेगा। फिर पोलियो नहीं होगा।' मैडम ने सरसरी जवाब दे दिया।


'पोलियो नहीं होगा, किसी ने पिछले जन्म में पाप किया हो तो?' लड़के का चेहरा पथरा गया।


मैडम को इस सवाल की तो कतई उम्मीद नहीं थी। उसने लड़के की तरफ देखा। तेजी से लड़के के भाव पकड़े। खुद को सहज करती हुई बोली, 'इस दवाई ने पूरे देश से पोलियो को खत्म कर दिया है। जिन्होंने आपसे कहा है कि पोलियो पिछले जन्म के पाप की वजह से होता है, वे अनपढ़ लोग हैं। और वे अपनी जहालत के लिए कभी माफी भी नहीं मांगते। आप मन से ये बात निकाल दीजिये। आपने कोई पाप नहीं किया है। आप तो बहुत अच्छे हैं, स्वीट,स्वीट।'


लड़का बैसाखी टेकता हुआ तेजी से स्कूल से बाहर निकला। सुनसान जगह देखकर दहाड़ मारकर रोया। घर जा कर लड़के ने दीवार से भगवान तुल्य बाबा की तस्वीर उतारी और अपने पोलियो ग्रस्त पैर के नीचे ले कर जोर से कुचल दी।


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